इस मौखिक गोलबंदी के बाद!

इस मौखिक गोलबंदी के बाद!

इसके बाद एक उजाला है,
अंधेरे की परछाई के उस पार
जो बन्द होते दरवाजों की कंगूरों से झांकती हैं
स्थिर होकर, देखती हैं चटाई को बनते हुए
जिसे एक स्त्री बनाती है,
अपने खर्राये हुए तलवों को छुपाते हुए
जांघों पर रख कर सहेजती हुई
इस गोलबंदी का असर है उसके ऊपर भी
हो सकता है वह यह सोचती और समझती हो
के यह गोलबंदी एक असत्य है
जिसे उस पर थोपा गया है
शून्य है उसकी तरसती आंखें
एक आडम्बर है
स्वतंत्रता और भूख के बीच

चुनने में से एक को

[Disclaimer: Views presented above are those of the author and do not necessarily reflect those of CBPS]

Syed Mazahir Husain
Senior Research Associate, CBPS

 

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